रोग को ऐसे ही समझे जैसे घर आंगन में पड़ा हुआ गंदा कूड़ा। उस कूड़े को बाहर निकालें ।धडकने याद दबाने से वह सढ़ता ही जाएगा और कलांतर में ज्यादातर हानिकारक बन जाएगा। रोग भी शरीर के अंदर एक कूड़ा है। विषय विजातीय द्रव्य है जिसको शरीर के बाहर जाना ही चाहिए। उसने दबाकर शरीर में रखना एक भयंकर भूल है ।।
होम्योपैथी दवाओं से रोग के शरीर से बाहर निकल कर और स्वस्थ व्यक्ति की जीवनी शक्ति को संतुलित कर उसे स्वस्थ प्रदान करता है।
इस तरह होम्योपैथ में रोक को दबाया नहीं जाता है रूप को शरीर से बाहर निकाला जाता है
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